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आजादी

पंछी के दोनों पैर जमीन में पूरी तरह धसे हुए हो और वह सिर्फ पंख हिला रहा हो, उसके जहन में वह उड़ रहा है लेकिन वह उड़ नहीं लड़ रहा है। यही जो आजादी जिसकी जरूरत हर बदन और हर रूह को होती है जो उसको असल में जिंदा रखती है अगर वह छीनी जाए तो जिंदगी का रंग फीका और फीका होते-होते सफेद हो जाता है। जो साफ सुथरा तो है मगर उसमें जज्बात ही नहीं। ना उसमें गम है ना आशा और ना ही कोई जान है।यह रंग जब जिंदगी से उड़ जाए तो अपनी गर्दन को थोड़ा ऊंचा करो और देखो आजू-बाजू क्या कोई सवाल पूछ रहा है? अगर जवाब नहीं आए तो समझ लेना कि अपनी पूरी कौम इसी जिंदगी को बेहतर मान रही है और देखना इस कौम का मुखिया कोई राजा होगा। वह राजा जिसकी कहानी हर घर में माँ अपने बच्चों को बचपन से सुनाती है। वह राजा जिसका स्तर किसी भगवान से ऊंचा माना जाता हो,अक्सर ऐसे राजा से कोई सवाल नहीं पूछता ,जैसे अपने अपने धर्म की किताबे जिस पर कोई सवाल नहीं कर सकता जिस पर चर्चा तो हो मगर उसमें उनकी सिर्फ अच्छाइयों को ही टटोला जाए कोई बुराई या कमी निकाले तो उसे इतना घिनौना समझो, या फिर मार ही दो। अगर आप सवाल नहीं पूछ पाते तो आप सोच भी नहीं पाते। मैं...